जौनपुर:-
रिपोर्टर, अब्दुर्रहीम शेख़।
जामिया ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशन के चेयरमैन व सुन्नी धर्मगुरु मौलाना अनवार अहमद क़ासमी ने कहा कि रोज़ा को अरबी भाषा में सौम कहते हैं जिसका अर्थ व्रत उपवास है। रमज़ान के पवित्र माह में रोज़ा रखना मुसलमानों पर अनिवार्य है। रोज़ा इस्लाम के पांच मूल स्तम्भों में से एक अहम स्तम्भ है। उन्होंने कहा कि रोज़ा रखने के पीछे बुनियादी मक़सद तक़वा,पाप से दूरी,भूख को जानना,और अल्लाह से माफ़ी है।
उन्होंने कहा कि रोज़ा का धार्मिक महत्व तो है ही साथ ही सेहत के लिये काफ़ी लाभदायक है। रमज़ान के महीने में अगर खान पान का ध्यान रखा जाए तो इससे वज़न खुद ही कम होता है। रमज़ान तीन अशरों से मिलकर बना है रहमत,मग़फ़िरत,जहन्नम से आज़ादी इस पवित्र महीने में अल्लाह की रहमत व बरकत बन्दों पर ख़ूब बरसती है इस महीने में ग़रीबों की मदद और उनके इफ़्तार व सहरी का ध्यान रखना चाहिए। रोज़ा का अजर व सवाब अल्लाह स्वयं देता है रोज़ा की फ़ज़ीलत इतनी है कि इसकी शब्दों में व्यख्या नहीं की जा सकती है।
मौलाना ने कहा कि सभी मुसलमानों को रमज़ान पवित्र माह की अहमियत को समझते हुए इस महीने में तीस दिन तरावीह का एहतेमाम करना चाहिए और साथ ही क़ुरआन ए पाक की तिलावत एवं ज़कात,सदक़ा ए फितर,ख़ैरात ज़्यादा से ज़्यादा पाबंदी के साथ इबादत समझ कर करना चाहिए जिससे अल्लाह खुश होता है और अपने बंदों को सवाब अता करता है। अल्लाह तआला हम सबको इस्लाम के इस अहम स्तम्भ को समझने और पूरे माह रोज़ा रखने की तौफ़ीक़ नसीब फरमाए।e...